विशेष फीचर-6
आम चुनाव-2014
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स्वतंत्र
और निष्पक्ष चुनाव
लोकतंत्र के आधार
हैं। इसमें मतदाताओं
के बीच अपनी नीतियों
तथा कार्यक्रमों
को रखने के लिए
सभी उम्मीदवारों
तथा सभी राजनीतिक
दलों को समान अवसर
और बराबरी का स्तर
प्रदान किया जाता
है। इस संदर्भ
में आदर्श आचार
संहिता (एमसीसी)
का उद्देश्य सभी
राजनीतिक दलों
के लिए बराबरी
का समान स्तर उपलब्ध
कराना प्रचार,
अभियान को निष्पक्ष
तथा स्वस्थ्य रखना,
दलों के बीच झगड़ों
तथा विवादों को
टालना है। इसका
उद्देश्य केन्द्र
या राज्यों की
सत्ताधारी पार्टी
आम चुनाव में अनुचित
लाभ लेने से सरकारी
मशीनरी का दुरूपयोग
रोकना है। आदर्श
आचार संहिता लोकतंत्र
के लिए भारतीय
निर्वाचन प्रणाली
का प्रमुख योगदान
है।
एमसीसी
राजनीतिक दलों
तथा विशेषकर उम्मीदवारों
के लिए आचरण और
व्यवहार का मानक
है। इसकी विचित्रता
यह है कि यह दस्तावेज
राजनीतिक दलों
की सहमति से अस्तित्व
में आया और विकसित
हुआ। 1960 में केरल
विधानसभा चुनाव
के लिए आदर्श आचार
संहिता में यह
बताया गया। कि
क्या करें और क्या
न करें। इस संहिता
के तहत चुनाव सभाओं
के संचालन जुलूसों,
भाषणों, नारों,
पोस्टर तथा पट्टियां
आती हैं। (सीईसी-श्री
के.वी.के. सुन्दरम्)
1962 के लोकसभा आम चुनावों
में आयोग ने इस
संहिता को सभी
मान्यता प्राप्त
राजनीतिक दलों
में वितरित किया
तथा राज्य सरकारों
से अनुरोध किया
गया कि वे राजनीतिक
दलों द्वारा इस
संहिता की स्वीकार्यता
प्राप्त करें।
(सीईसी-श्री के.वी.के.
सुन्दरम्) 1962 के आम
चुनाव के बाद प्राप्त
रिपोर्ट यह दर्शाता
है कि कमोबेश आचार
संहिता का पालन
किया गया। 1967 में
लोकसभा तथा विधानसभा
चुनावों में आचार
संहिता का पालन
हुआ। (सीईसी-श्री
के.वी.के. सुन्दरम्)
आदर्श
आचार संहिता का
विकास तथा 1967 से इसका
क्रियान्वयन
·
1968 में निर्वाचन
आयोग ने राज्य
स्तर पर सभी राजनीतिक
दलों के साथ बैठकें
की तथा स्वतंत्र
तथा निष्पक्ष चुनाव
सुनिश्चित करने
के लिए व्यवहार
के न्यूनतम मानक
के पालन संबंधी
आचार संहिता का
वितरण किया। (सीईसी-
श्री एस.पी.सेन
वर्मा)
·
1971-72 में लोकसभा/विधानसभाओं
के आम चुनावों
में आयोग ने फिर
आचार संहिता का
वितरण किया। (सीईसी-
श्री एस.पी.सेन
वर्मा)
·
1974 में कुछ राज्यों
की विधानसभाओं
के आम चुनावों
के समय उन राज्यों
में आयोग ने राजनीतिक
दलों को आचार संहिता
जारी किया। आयोग
ने यह सुझाव भी
दिया कि जिला स्तर
पर जिला कलेक्टर
के नेतृत्व में
राजनीतिक दलों
के प्रतिनिधियों
को सदस्य के रूप
में शामिल कर समितियां
गठित की जाएं ताकि
आचार संहिता के
उल्लंघन के मामलों
पर विचार किया
जा सके तथा सभी
दलों तथा उम्मीदवारों
द्वारा संहिता
के परिपालन को
सुनिश्चित किया
जा सके।
·
1977 में लोकसभा
के आम चुनाव के
लिए राजनीतिक दलों
के बीच संहिता
का वितरण किया
गया। (सीईसी- श्री
टी.स्वामीनाथन)
·
1979 में निर्वाचन
आयोग ने राजनीतिक
दलों से विचार-विमर्श
कर आचार संहिता
का दायरा बढाते
हुए एक नया भाग
जोड़ा जिसमें "सत्तारूढ़
दल" पर प्रतिबंध
लगाने का प्रावधान
हुआ ताकि सत्ताधारी
दल अन्य पार्टियों
तथा उम्मीदवारों
की अपेक्षा अधिक
लाभ उठाने के लिए
शक्ति का दुरूपयोग
न करे। (सीईसी- श्री
एस.एल.शकधर)
·
1991 में आचार संहिता
को मजबूती प्रदान
की गई और वर्तमान
स्वरूप में इसे
फिर से जारी किया
गया। (सीईसी- श्री
टी.एन.शेषन)
·
वर्तमान आचार
संहिता में राजनीतिक
दलों तथा उम्मीदवारों
के सामान्य आचरण
के लिए दिशानिर्देश
(निजी जीवन पर कोई
हमला नहीं, साम्प्रदायिक
भावनाओं वाली कोई
अपील नहीं, बैठकों
में अनुशासन और
शिष्टाचार, जुलूस,
सत्तारूढ़ दल के
लिए दिशानिर्देश-
सरकारी मशीनरी
तथा सुविधाओं का
उपयोग चुनाव के
लिए नहीं किया
जाएगा, मंत्रियों
तथा अन्य अधिकारियों
द्वारा अनुदानों,
नई योजनाओं आदि
की घोषणा पर प्रतिबंध)
है।
·
मंत्रियों
तथा सरकारी पद
पर आसीन लोगों
को सरकारी यात्रा
के साथ चुनाव यात्रा
को जोड़ने की अनुमति
नहीं।
·
सार्वजनिक
कोष की कीमत पर
विज्ञापनों के
जारी करने पर पाबंदी।
·
अनुदानों, नई
योजनाओं/परियोजनाओं
की घोषणा नहीं
की जा सकती। आदर्श
आचार संहिता लागू
होने से पहले घोषित
ऐसी योजनाएं जिनका
क्रियान्वयन आरंभ
नहीं हुआ है, उन्हें
लम्बित स्थिति
में रखने की आवश्यकता।
·
ऐसे प्रतिबंधों
के माध्यम से सत्ता
में रहने के लाभ
को रोका जाता है
तथा बराबरी के
आधार पर चुनाव
लड़ने का अवसर
उम्मीदवारों को
प्रदान किया जाता
है।
·
आदर्श आचार
संहिता को देश
के शीर्ष न्यायालय
से न्यायिक मान्यता
मिली है। आदर्श
आचार संहिता के
प्रभाव में आने
की तिथि को लेकर
उत्पन्न विवाद
पर भारत संघ बनाम
हरबंस सिंह जलाल
तथा अन्य [एसएलपी
(सिविल) संख्या
22724-1997] में 26.04.2001 को
उच्चतम न्यायालय
ने निर्णय दिया
कि चुनाव तिथियों
की घोषणा संबंधी
निर्वाचन आयोग
की प्रेस विज्ञप्ति
या इस संबंध में
वास्तविक अधिसूचना
जारी होने की तिथि
से आदर्श आचार
संहिता लागू होगी।
उच्चतम न्यायालय
ने निर्णय दिया
कि आयोग द्वारा
प्रेस विज्ञप्ति
जारी करने के समय
से आदर्श आचार
संहिता लागू होगी।
प्रेस विज्ञप्ति
जारी होने के दो
सप्ताह बाद अधिसूचना
जारी की जाती है।
उच्चतम न्यायालय
के इस निर्णय से
आदर्श आचार संहिता
के लागू होने की
तिथि से जुड़ा
विवाद हमेशा के
लिए समाप्त हो
गया। इस तरह आदर्श
आचार संहिता चुनाव
घोषणा की तिथि
से चुनाव पूरे
होने तक प्रभावी
रहती है।
आचार
संहिता को वैधानिक
दर्जाः निर्वाचन
आयोग की राय
कुछ
हिस्सों में आदर्श
आचार संहिता को
वैधानिक दर्जा
देने की बात की
जाती है। लेकिन
निर्वाचन आयोग
आदर्श आचार संहिता
को ऐसा दर्जा देने
के पक्ष में नहीं
है। निर्वाचन आयोग
के अनुसार कानून
की पुस्तक में
आदर्श आचार संहिता
को लाना केवल अनुत्पादक
(प्रतिकूल) होगा।
हमारे देश में
निश्चित कार्यक्रम
के अनुसार सीमित
अवधि में चुनाव
कराये जाते हैं।
सामान्यतः किसी
राज्य में आम चुनाव
निर्वाचन आयोग
द्वारा चुनाव कार्यक्रम
घोषित करने की
तिथि से लगभग 45 दिनों
में कराया जाता
है। इस तरह आदर्श
आचार संहिता के
उल्लंघन संबंधी
मामलों को तेजी
से निपटाने का
महत्व है। यदि
आदर्श आचार संहिता
के उल्लंघन को
रोकने तथा उल्लंघनकर्ता
के विरुद्ध चुनाव
प्रक्रिया के दौरान
सही समय से कार्रवाई
नहीं की जाती तो
आदर्श आचार संहिता
का पूरा महत्व
समाप्त हो जाएगा
तथा उल्लंघनकर्ता
उल्लंघनों से लाभ
उठा सकेगा। आदर्श
आचार संहिता को
कानून में बदलने
का अर्थ यह होगा
कि कोई भी शिकायत
पुलिस/मजिस्ट्रेट
के पास पड़ी रहेगी।
न्यायिक प्रक्रिया
संबंधी जटिलताओं
के कारण ऐसी शिकायतों
पर निर्णय संभवतः
चुनाव पूरा होने
के बाद ही हो सकेगा।
आदर्श
आचार संहिता विकास
गतिविधियों में
बाधक नहीं
अकसर
यह शिकायत सुनने
को मिलती है कि
आदर्श आचार संहिता
विकास गतिविधियों
की राह में बाधा
बनकर आ जाती है।
लेकिन आदर्श आचार
संहिता के सीमित
अवधि में लागू
किये जाने पर भी
जारी विकास गतिविधियां
रोकी नहीं जाती
और उन्हें बिना
किसी बाधा के आगे
जारी रखने की अनुमति
दी जाती है और ऐसी
नई परियोजनाएं
चुनाव पूरी होने
तक टाल दी जाती
हैं जो शुरू नहीं
हुई हैं। ऐसे काम
जिनके लिए अकारण
प्रतीक्षा नहीं
की जा सकती (आपदा
की स्थिति में
राहत कार्य आदि)
उन्हें मंजूरी
के लिए आयोग को
भेजा जा सकता है।
रिट याचिका
संख्या 1361-2012 (डॉ. नूतन
ठाकुर बनाम भारत
निर्वाचन आयोग)
में इलाहाबाद उच्च
न्यायालय की लखनऊ
पीठ के 16.02.2012 के निर्णय
को यहां उद्धृत
करना उपयुक्त होगाः
'चुनाव
के बाद जन प्रतिनिधि
पाँच वर्ष की अवधि
के लिए अपना दायित्व
निभाते हैं। विधानसभा
या संसद के स्थगन
या सदन के पहले
भंग हो जाने की
स्थिति को छोड़कर
चुनाव जन प्रतिनिधियों
के कार्यकाल के
अंत में होते हैं।
पद पर रहते हुए
जन प्रतिनिधि का
दायित्व है कि
वह देश सेवा के
लिए अपने दायित्वों
का निर्वहन ईमानदारी
तथा निष्पक्षता
से करे। यदि वह
अपने कार्यकाल
के दौरान दायित्व
निर्वहन में सफल
नहीं होता तो निर्वाचन
अधिसूचना जारी
होने के बाद लोगों
को प्रलोभन देने
या लोगों के तुष्टिकरण
जैसे उसके कदम
अनुचित व्यवहार
के उदाहरण होंगे।'
*पीआईबी
चुनाव प्रकोष्ट
टीम
पिछले
आम चुनावों की
सूचना के लिए कृपया
पीआईबी की वेबसाइट
www.pibnic.in देखें ।
वि.कासोटिया/ए.जी/डी
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